why we celebrate Navratri | Navratri kyu Manate hai | Navratri 2017
अनेकता में एकता ही हमारी शान है,
इसलिए मेरा भारत महान है.
भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश, जिसकी सभ्यता और संस्कृति पूरी विश्व में सबसे समृद्ध और अनूठी है. एक ऐसा देश जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, सभी धर्म और जाति के लोग सद्भावना से रहते हैं, तभी तो इसकी सभ्यता पुरे विश्व में प्रचलित है और सभी इसके दीवाने हैं, चाहे वो ‘बराक ओबामा’ हो या ‘हेनरी क्लिंटन’, ‘व्लादिमीर पुतिन’ हो या ‘डोनाल्ड ट्रम्प’. भारतवर्ष में अनेक पर्व-त्यौहार मनाये जाते हैं और सभी त्योहारों की अपनी अलग मान्यता और महत्ता है. इन्हीं त्योहारों में से एक त्यौहार है ”नवरात्री” अर्थात् नौ रातों की पूजा.
प्रत्येक वर्ष नवरात्री साल में दो बार मनाई जाती है, एक चैत्री नवरात्री जो अप्रैल माह में मानते हैं और दूसरी अश्विन नवरात्री जो सितम्बर-अक्टूबर में मनाई जाती है. हांलाकि, हिंदी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं, चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ. हिंदू कैलेंडर के अनुसार इन महीनों के शुक्ल पक्ष में नवरात्र आते हैं. हिंदू नववर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानि पहले नवरात्र को मनाया जाता है. आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्र कहा जाता है. चैत्र और अश्विन माह के नवरात्र बहुत लोकप्रिय हैं. अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आनेवाले नवरात्रों को दुर्गा पूजा और शारदीय नवरात्रों के नाम से भी जाना जाता है.
नौ दिन मनाई जानेवाली इस पर्व की अपनी पौराणिक कथाएँ हैं. नवरात्री की शुरूआत सनातन काल से हुई थी. सबसे पहले भगवान रामचंद्र ने समुंद्र के किनारे नौ दिन तक दुर्गा मां का पूजन किया था और इसके बाद लंका की तरफ प्रस्थान किया था. फिर उन्होंने युद्ध में विजय भी प्राप्त की थी, इसलिए दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है और माना जाता है कि इस दिन अधर्म की धर्म पर जीत, असत्य की सत्य पर जीत होती है. हर दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा-अर्चना होती है.
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माना जाता है कि कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी ‘मां सती’ ने ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया था. उन्हें ही ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जोड़कर देखा जाता है और ये माँ दुर्गा की नौ देवियाँ हैं. माँ दुर्गा को जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि नामों से भी पुकारा जाता है. ये सभी सदाशिव की अर्धांगिनी है.
माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री ‘सती माता’ को शक्ति कहा जाता है. शिव के कारण उनका नाम शक्ति हो गया. हालांकि उनका असली नाम ‘दाक्षायनी’ था. यज्ञ कुंड में कुदकर उन्होंने आत्मदाह कर लिया था इसलिए भी उन्हें सती कहा जाता है. बाद में उन्होंने पार्वती के रूप में जन्म लिया. पार्वती नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्री थीं, राजकुमारी थीं. पिता की इच्छा के विरुद्ध उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया. एक यज्ञ में जब दक्ष ने सती और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी माता सती, शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही. सती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए.
यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया. इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे. इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहां बाद में शक्तिपीठ का निर्माण किया गया. जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया. कहा जाता है की पूरे भारत में अलग-अलग स्थानों पर ५२ शक्तिपीठ हैं. हांलाकि इसका यह मतलब नहीं है कि अनेक माताएं हैं, ये माता के विभिन्न अंग हैं और उनके रूप हैं.
माता पर्वती ने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था. मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है. पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं. शेर हमेशा माता के साथ रहता है, वह माता की सवारी है.
पूजा का शुभ मुहूर्त :
इस वर्ष नवरात्री कल यानी 21 सितम्बर से शुरू होनेवाली है. पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है जिसे ‘कलशस्थापन’ कहते हैं. लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं. कलश स्थापना बहुत-ही नियम-निष्ठा से की जाती है. कहते हैं कि ये कलश शुभ मुहूर्त में स्थापित करने से आपके जीवन में आनेवाली सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं. इस बार नवरात्रि का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक रहेगा. इसके बाद नौ दिन तक रोजाना मां दुर्गा का पूजन और उपवास किया जाता है. अभिजीत मुर्हूत 11.36 से 12.24 बजे तक है. देवी बोधन 26 सितंबर, मंगलवार को होगा. बांग्ला पूजा पद्धति को मानने वाले पंडालों में उसी दिन पट खुल जाएंगे. जबकि 27 सितंबर सप्तमी तिथि को सुबह 9.40 बजे से देर शाम तक माता रानी के पट खुलने का शुभ मुहूर्त है. नवरात्री में सुबह उठकर सप्तशती का पाठ करना शुभ रहता है.
माँ के नौ रूप :
1. माता शैलपुत्री – ये नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ है. नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है. इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं. यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है.
2. माता ब्रह्मचारिणी – नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है.
3. माता चंद्रघंटा – मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है.
4. माता कूष्माण्डा – नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन ‘अदाहत’ चक्र में अवस्थित होता है. अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना करनी चाहिए.
5. स्कंदमाता – नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है. मोक्ष के द्वार खोलने वाली यह माता परम सुखदायी हैं. मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं.
6. माता कात्यानी देवी – कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती के नौं रूपों में छटवां रूप है. यह अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम हैं.
7. माता कालरात्रि – मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं. दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है. इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है. इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.
8. माता महागौरी – मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है. दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है. यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है. इस दिन प्रायः सुहागिन महिलाएं माता की पूजा कर उनका श्रृंगार करती हैं.
9.माता सिद्धिदात्री – सिद्धिदात्री मां अपने भक्त को सिद्ध प्राप्त करवाती हैं और उन्हें शक्तियां प्रदान करती हैं. इस दिन लोग घुमने और मेला देखने जाते हैं.
दसवें दिन ”विजयादशमी” मनाई जाती है. इस दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है और यह सन्देश दिया जाता है कि बुराई पर सदा ही अच्छाई की जीत होती है, असत्य पर हमेशा ही सत्य की जीत होती है. माँ दुर्गा हम सभी की मनोकामनाओं को पूर्ण करें और हम सब पर अपना आशीर्वाद बनाये रखे, ये कामना है. आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं.