This shaktipeeth comes in number six, here kalidas became wise froom the blessing of goddess gardhkalika
उज्जैन। महाकवि कालिदास उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य के नौ-रत्नों में से एक थे। बुद्धि कौशल तथा कविता रचना में उनकी प्रतिभा विलक्षण थी। हालांकि, वह शुरू से ही इतने विद्वान नहीं थे। कहते हैं बाल्यकाल में कालिदास महामूर्ख थे। वे जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे।
मगर, अपनी आराध्य देवी की कृपा से ही कालिदास महाकवि बने और सम्राट विक्रमादित्य के नौ-रत्नों में शामिल हुए। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। त्रिपुर महत्म्य के अनुसार, देश के 12 शक्तिपीठों में से यह छठा स्थान है।
यह मंदिर जहां स्थित है, वहां कभी प्राचीन अवंतिका नगरी बसी थी। कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका का मंदिर वर्तमान में उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थापित है। इनकी आराधना से ही कालिदास सरस्वती पुत्र कहलाए। इस मंदिर के कुछ अंश का जीर्णोद्धार ई.सं. 606 के लगभग सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था। इसके अलावा स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। गढ़ नामक स्थान पर होने के कारण गढ़ कालिका हो गया है।
माता को चढ़ता है श्रृंगार
माता को श्रृंगार समग्री चढ़ाई जाती है। माता का स्वरूप प्रसन्नता देता है। भक्तों पर कृपा करते हुए मां सदा मुस्कुराती हुई प्रतीत होती हैं। मूर्ति में चांदी के दांतों का भी आकर्षक प्रयोग किया गया है। माता की मूर्ति सिंदूरवर्णी है।
जलते हैं दीपस्तंभ
मंदिर परिसर में अतिप्राचीन दीप स्तंभ भी हैं, जो नवरात्रि में जलाए जाते हैं। इनमें 108 दीप विद्यमान हैं, जो शक्ति का प्रतीक हैं। नौंवी सदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हर्ष विक्रमादित्य ने करवाया था। यहां पर नवरात्रि में लगने वाले मेले के अलावा भिन्न-भिन्न मौकों पर उत्सवों और यज्ञों का आयोजन होता है। कहते हैं कि यहां नवरात्रि के नौ दिनों में कई तंत्र-मंत्र और सिद्धियां की जाती हैं।
सिद्ध तांत्रिक स्थान
उज्जैन का गढ़कालिका क्षेत्र तांत्रिक और सिद्ध स्थान है। लिंग पुराण में कथा है कि जिस समय राम, रावण को मारकर अयोध्या वापस लौट रहे थे तो वे कुछ देर के लिए रुद्रसागर के पास रुके थे। उसी रात को कालिका भक्ष्य के रूप में निकली हुई थीं। उन्होंने हनुमान को पकड़ने का प्रयत्न भी किया पर हनुमान के भीषण रूप लेने पर देवी भयभीत हो गई।
भागने के समय जो अंग गलित होकर गिर गया, वही स्थान यह कालिका देवी का है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। मंदिर के अंदर ही गणेशजी की प्राचीन पौराणिक प्रतिमा है, सामने ही पुरातन हनुमान मंदिर है। इससे लगी हुई विष्णु की एक भव्य चतुर्भुज प्रतिमा है, जो अद्भुत और दर्शनीय है। नाथ परंपरा की भर्तृहरि गुफा और मत्स्येन्द्र नाथ की समाधि भी इसी क्षेत्र में है।