नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल के दाम वर्तमान में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुके हैं। विपक्षी दलों ने सोमवार को देशभर में विरोध-प्रदर्शन किया। अामजन भी पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से हलकान हैं। उधर, सरकार ने ईंधन की खुदरा कीमतें कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में किसी भी तत्काल कमी की संभावना से इनकार कर दिया है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे पेट्रोल और डीजल के दाम कम करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले वैट में 2 रुपए प्रति लीटर की कटौती की घोषणा की है। वहीं, राजस्थान सरकार ने रविवार को चार फीसद कटौती की घोषणा की। हालांकि, अधिकांश राज्य ईंधन के दाम में कटौती करने को ज्यादा उत्साहित नहीं हैं।
मगर, सवाल यह है कि ईंधन पर करों में कटौती करना सरकारों के लिए इतना मुश्किल क्यों है? दरअसल, पेट्रोल और डीजल पर लगने वाला कर केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसमें कटौती करने से उनकी राजकोषीय स्थिति खराब हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने साल 2017-18 में पेट्रोलियम उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी से 2.29 लाख करोड़ रुपए और साल 2016-17 में 2.42 लाख करोड़ रुपए जुटाए थे। पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क वर्तमान में 19.48 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 रुपए प्रति लीटर है। वैश्विक रूप से तेल की कीमतों में गिरावट के दौरान केंद्र अपने वित्तीय खजाने को भरने के लिए नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच समय पर उत्पाद शुल्क नौ बार बढ़ाया।
हालांकि, पिछले साल अक्टूबर में प्रति लीटर उत्पाद शुल्क में 2 रुपए प्रति लीटर की कटौती की थी। क्रूड पेट्रोलियम पर 20 फीसद ऑयल इंडस्ट्री डेवलपमेंट सेस लगता है। इसके साथ ही राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक ड्यूटी (NCCD) 50 रुपए प्रति मीट्रिक टन लगता है। क्रूड ऑयल पर कोई सीमा शुल्क नहीं लगता है, लेकिन पेट्रोल और डीजल पर 2.5 फीसद सीमा शुल्क लगता है।
ईंधन पर लगने वाले राज्य बिक्री कर या मूल्य वर्धित कर (वैट) की दरें हर राज्य में अलग-अलग हैं। उत्पाद शुल्क के विपरीत, वैट की दर अधिक हैं, लिहाजा तेल के दाम बढ़ने पर राज्यों को उच्च राजस्व मिलता है। पेट्रोलियम उत्पादों पर बिक्री कर/वैट के माध्यम से राज्य की कमाई साल 2016-17 में 1.66 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर साल 2017-18 में 1.84 लाख करोड़ रुपए हो गई।
महाराष्ट्र सरकार ने साल 2017-18 में पेट्रोलियम उत्पादों पर बिक्री कर/वैट से 25,611 करोड़ रुपए कमाए, जो देश में सबसे ज्यादा है। इसके बाद यूपी ने बिक्री कर/वैट 17,420 करोड़ रुपए, तमिलनाडु ने 15,507 करोड़ रुपए, गुजरात ने 14,852 करोड़ रुपए और कर्नाटक ने 13,307 करोड़ रुपए राजस्व कमाया।
साथ ही, अधिकांश राज्य जो पेट्रोल और डीजल पर उच्चतम कर लगाते हैं, उनका सकल राजकोषीय घाटा अधिक है। उदाहरण के लिए असम में 12.7 फीसद राजकोषीय घाटा है और वहां पेट्रोल पर 32.66 फीसद वैट या 14 रुपए प्रति लीटर में से जो भी अधिक हो, वह कर के रूप में लगाया जाता है। वहीं, डीजल पर 23.66 फीसद वैट या 8.75 रुपए प्रति लीटर में से जो भी अधिक हो वह कर वसूला जाता है।