Omkareshwar water damaged after ganesh idol immerses
रुमनी घोष, इंदौर। मूर्ति विसर्जन से पानी की गुणवत्ता 10 दिन के भीतर ही किस तरह तीन से चार गुना घट जाती है, इसका खुलासा मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सैंपल रिपोर्टिंग से होता है। गणपति विसर्जन के एक दिन पहले, विसर्जन के दिन और उसके दस दिन बाद नर्मदा सहित प्रदेशभर की प्रमुख नदियों और कुंड के पानी की सैंपलिंग की गई। इसमें सबसे खराब स्थिति जबलपुर, नरसिंहपुर, मंडला इलाके से गुजरने वाली नर्मदा में दर्ज की गई।
यहां पानी में धातु की मात्रा (लेड, मैग्निशियम, जिंक, क्रोमियम) मिली। मालवा-निमाड में विसर्जन के लिए अलग से पांच कुंड ओंकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, मोरटक्का, धरमपुरी में नर्मदा किनारे बनाए गए थे। इसमें से ओंकारेश्वर के पानी की गुणवत्ता सबसे ज्यादा खराब हुई। इसमें पानी की टरबिडिटी (पारदर्शिता), कंडक्टिविटी (चालकता), टोटल डिसॉल्व सॉलिड (ठोस घुलनशील पदार्थ) केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) और बायोमेडिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) आदि बढ़ी हुई पाई गई।
इसके बाद क्रमश : मोरटक्का और धरमपुरी के कुंड में पानी की गुणवत्ता में असर देखा गया।
ईको फ्रैंडली मूर्तियों का असर : मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, इंदौर के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. दिलीप बाघेला
का कहना है कि पानी में धातु का मिलना सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। मालवा-निमाड इलाके की नदियों और कुंड में धातु नहीं मिलना इस बात के संकेत है कि इस बार ईको फ्रैंडली मूर्तियां ज्यादा बिकी हैं। प्लास्टर ऑफ पैरिस (पीओपी) या अन्य केमिकल वाली मूर्तियों का प्रयोग कम हुआ है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नदी में प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगाई गई।