भोपाल। उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों ने भाजपा में असीमित जोश भर दिया है। केंद्र और प्रदेश में तो उसकी सरकार पहले से है ही, अब नगरीय निकायों पर मिली फतेह ने यह साबित कर दिया है कि आम आदमी के सिर से अभी भाजपा और नरेंद्र मोदी का जादू उतरा नही है। उस पर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपनी प्रासांगिकता सिद्ध करते हुए यह संदेश भी दे दिया है कि दिल्ली अथवा अन्य प्रदेशों में भाजपा को मिली सफलता कोई इत्तेफाक नही है। बल्कि यह आम आदमी के बीच भाजपा के प्रति लगातार बढ़ रहा विश्वास ही है। और यह सही भी है कि जिस प्रकार के चुनाव परिणाम विभिन्न चुनावों के अन्य अन्य प्रदेशों से आ रहे हैं वो भाजपा के निरंतर बढ़ रहे जनादेश की ओर संकेत करते हैं। इस पार्टी को उम्मीद से ज्यादा मिल रहे इस विश्वास को बनाए रखने की चुनौती भी उतनी ही बढ़ती जा रही है। उसे अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह बताना होगा कि वर्तमान समय राजनीति का बड़ी ही चिकना संक्रमण काल है। ऐसे में अभिमान और अति उत्साह पार्टी और पार्टीजनों को बहुत जल्दी अपनी चपेट में लेता है। अत: जरूरत है अपने पर आत्म संयम बनाए रखने की। क्यों कि अभी ठीक सामने गुजरात के विधान सभा चुनाव हैं। नि:संदेह उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों ने वहां के कार्यकर्ताओं में आत्म विश्वास का इजाफा किया है। यही नही, गुजरात के मतदाताओं की मानसिकता को भी यूपी का चुनाव परिणाम प्रभावित करने वाला है। इसलिए यह माना जा सकता है कि यदि भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता जमीन पर बना रहा तो उसे सफलता मिलने की संभावनाएं और ज्यादा नजर आने लगी हैं। बात यही खत्म नही होती। ठीक एक साल के अंतर से देश की अनेक विधान सभाओं के चुनाव होने वाले हैं। उनके परिणाम क्या होंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात साफ है कि एक समय जो ताकत भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस को प्राप्त रहती थी, वह अब भाजपा की ओर स्थानांतरित हो रही है। ऐसे मे जरूरत इस बात की है कि यह पार्टी इतिहास से सबक ले और अपने को तानाशाह होने से खद ही बचाती रहे। क्यों कि इस तरह की गलती कांग्रस की मजबूत सरकार के रहते तब की प्रधान मंत्री और इंदिरा इज इंडिया कही जाने वालीं श्रीमती इंदिरागांधी के हाथों हो चुकी है। यही वो समय था, जब जससंघ को अपने पैर जमाने का राष्ट्रीय स्तर पर आधार मिला और वह अनेक प्रतिकूलताओं से जूझती हुई अंतत: आज भारत के अधिकांश हिस्से पर काबिज हो गई। यही नही इस पार्टी को आज भारत की ही नही, दुनिया की सबसे बड़ी कही जाने वाली गिनी चुनी पार्टियों में एक प्रमुख पार्टी होने का दर्जा प्राप्त है। अब देखना ये है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस अपने लोकतांत्रिक धर्म को किस प्रकार निभा पाती है। इससे भी ज्यादा देखने योग्य पहलू यह होगा सत्ता के शीर्ष पर बैठी भाजपा सफलता के गरूर से खुद को बचाते हुए अपने राजनैतिक विरोधियों को कितना सम्मान दे पाती है। क्यों कि जनता ने भाजपा को जो चौतरफ जनादेश दिया है, वो इसी उम्मीद के साथ दिया है कि कांग्रेस ने जो गलतियां की भाजपा उन्हें नही दुहराएगी। उसे ध्यान रखना होगा कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी को इसलिए भी याद किया जाता है कि उन्होंने अपने प्रधान मंत्रित्वकाल में संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने के लिए तत्कालीन विपक्षी नेता और श्री अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार की ओर से भेजा था। यदि वर्तमान भाजपा और उसके निर्विवाद नेता नरेंद्र मोदी की बात की जाए तो उनकी सिद्धता आज भारतीय राजनीति में उतनी ही है और वैसी ही है जो कभी कांग्रेस और उसकी एक मात्र नेता इंदिरा गांधी की हुआ करती थी। यदि कार्यशैली की तुलना करें तो श्री मोदी भी अपने लक्ष्यों के प्रति बेहद जिद्दी नजर आते हैं। यही वजह है कि आज का प्रबुद्ध वर्ग यही कामना कर रहा है कि भाजपा का जनाधार कितना भी बढ़ जाए, उसका गरूर कतई नही बढऩा चाहिए। यदि ऐसा होता है तो यह खुद भाजपा के लिए तो फायदेमंद होगा ही, भारतीय लोकतंत्र को भी इसका काफी लाभ मिलेगा। आज नि:संदेह भाजपा के लिए जश्र मनाने का दिन है। वहीं कांग्रेस को आत्म मंथन करने की जरूरत है कि एक समय देश की सबसे बड़ी पार्टी कही जाने वाली और देश को आजादी दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाने वाली कांग्रेसी नेतृत्व से ऐसी कौनसी भूल हुई जो देश का मतदाता उससे पीठ करके बैठ गया है और भूल करके भी उसे मौका देने से परहेज करता दिखाई दे रहा हैंं। बहरहाल अभी भाजपा बधाई की हकदार है, उम्मीद की जाती है कि वो झोली भर भर कर मिल रहे जनादेश का सम्मान करेगी और भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगी। ताकि भारत की दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने की साख बरकरार बनी रहे। यह पार्टी जनादेश का सम्मान बनाए रखे, यही शुभकामना है।