भोपाल (Rajkumar bali)। तीन दशक से ज्यादा हो गए अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहे हुए, लेकिन मंदिर मस्जिद मुद्दा आज भी जन मानस में जीवित बना हुआ है। विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनाव और फिर बाद में आने वाले लोकसभा चुनाव, इस बीच सुप्रीम कोर्ट में चल रही निर्णायक सुनवाई ने इस मसले को एक बार फिर चर्चाओं में ला दिया है। ज्ञात ही है कि आजकल अदालत में अयोध्या मुद्दे पर रोजाना सुनवाई हो रही है। इस दौरान 6 दिसम्बर का दिन भी रूबरू है, जिसे कुछ लोग शर्म का दिन मानते हैें तो कुछ शौर्य दिवस भी मना रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस बेहद ज्वलंत मामले का आखिरी हल क्या है। उससे भी बड़ा सवाल ये है कि भारत के राजनैतिक दल इस बारे में क्या सोचते हैं। क्यों कि ये जो सोचते हैं, वो आम आदमी नही समझ पाता। लेकिन जहां तक आम आदमी की बात है, वो अब इस मामले का स्थाई हल चाहता है। आज भी संघ और उसके अनेक अनुषांगिक संगठन के कुछ नेता यही टेर लगाते हैं कि मंदिर वहीं बनाएंगे। कांग्रेस की मंशा चाहे जो भी हो, लेकिन वो सत्ता में बैठी संघ के विचारों का प्रतिनिधित्व कर रही भाजपा सरकार से एक ही सवाल करती है कि आखिर मंदिर कब बनाएंगे। बात सही भी है कि वर्तमान में केंद्र और जहां अयोध्या है, उस उत्तर प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। तो फिर भाजपा और मंदिर समर्थक हिंदुवादी संगठन यह क्यों नही बताते कि मंदिर कब बनाएंगे। दरअसल कांग्रेस यह बात कहकर आम जनता को यह समझाना चाहती है कि संघ, विहिप और भाजपा मंदिर की सिर्फ बात करते हैं, क्यों कि भावनात्मक मुद्दों को उठाकर ये दल सरकार में बने रहना चाहतें हैं। जबकि इन्हें मंदिर से कुछ लेना देना नही है। इधर भाजपा की बात करें तो वो न्यायालय और आम सहमति की बात करती नजर आती है। कारण साफ है, अब भाजपा विपक्ष में न होकर सरकार पर काबिज है। वो अदालत में चल रहे मामले पर प्रतिकूल टिप्पणी कर कानूनी आफत मोल नही ले सकती। लेकिन इस पार्टी का जो समर्थक वर्ग है, जिसने राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिकआचार संहिता के नाम पर भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाया, वह वर्ग अब वर्तमान सरकार से उक्त तीनों मामलों पर स्पष्ट क्रियान्वयल चाहता है। और भाजपा भी इस बात को समझ रही है। यही वजह है कि उसने तीन तलाक के मसले में कानूनी हस्तक्षेप करके समान आचार संहिता की बात को अमल में लाए जाने का आम जनता को संदेश देने का प्रयास किया है। अब रह जााते हैं राम मंदिर और धारा 370, तो कश्मीर में आतंकवादियों और सेना के बीच लगातार एनकाउंटर जारी हैं, और संदेश दिया जा रहा है कि भाजपा अपना वादी भूली नही है। अब शेष बचा मंदिर निर्माण का मामला, सो वह न्यायालय में विचाराधीन है। अत: सरकार की नजरें आने वाले फैसले पर है, ऊंट किस करवट बैठेगा अभी कोई नही जानता। लेकिन भाजपा की परेशानी यही है कि उसने विपक्ष में रहकर हुंकार भरी थी कि मंदिर वहीं बनाएंगे। सच भी यही है कि वो राम मंदिर का ही मुद्दा है, जिसने भाजपा को विपक्ष से सत्ता की ओर अग्रसर किया था। यदि लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के बीच रथयात्रा न निकाली होती तो भाजपा का सरकार की ओर बढऩे का मार्ग प्रशस्त नही हुआ होता। आज भले ही आडवाणी राजनीति से ओझल हो गए हों, लेकिन उनका राम मंदिर मुद्दा भाजपा की मजबूरी बना हुआ है। क्यों कि वह ये नही कह सकती कि उसके पास पर्याप्त बहुमत नही है। उत्तर प्रदेश में और केंद्र सरकार में वह अभूतपूर्व बहुमत के साथ विराजमान है। अत: उसकी यह मजबूरी होगी कि वो 2019 के आम चुनाव में राम मंदिर निर्माण को लेकर बयाजबाजी करने की बजाय जमीनी स्तर पर कुछ करके दिखाए। वर्ना दावे के साथ कहा जा सकता है कि भावी समय में यह मुद्दा भाजपा की बजाय कांग्रेस के हाथ होगा। बस नारे ही बदले स्वरूप में दिखाई देंगे। भाजपा कहती थी कि मंदिर वहीं बनाएंगे, जबकि कांग्रेस का जाना पहचाना नारा होगा कि सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नही बताएंगे। भाजपा भी भविष्य की आशंकाओं से अंजान नही है, तभी तो उसने न्यायालयीन कार्यवाही के साथ आम सहमति के प्रयास भी तलाशने शुरू कर दिए हैं, जिन्हें श्रीश्री रवि शंकर जी की सक्रियता के रूप में निहार सकते हैं। वे मुस्लिम संगठनों के बीच आम सहमति की अघोषित मुहिम छेड़े हुए हैं। ताकि न्यायालयीन फैसले से बात न बनी तो मंदिर निर्माण के बीच का रास्ता अख्तियार कर सकें। कुल मिलाकर भाजपा के लिए यह करो या मरो का समय है। उसे न्यायालयीन फैसले का सम्मान भी बनाए रखना है, सांप्रदायिक सौहाद्र्र को भी बनाए रखना है और मंदिर निर्माण की बात पर भी अपने को खरा साबित करना है। यदि वह ऐसा नही कर पाई तो कोई आश्चर्य नही कि उसे विरोधी दलों के साथ साथ मतदाताओं की आक्रामकता का भी सामना करना पड़ जाए। इस नजर से देखा जाए तो राम मंदिर अब केवल शौर्य दिवस मनाकर विधान सभा चुनावों में भुनाया जाने का मुद्दा भर नही है। उसे आम आदमी के मानस से भुलाया भी नही जा सकता। ……पवन बाली